बहुमुखी प्रतिभा के धनी पंडित सुंदरलाल शर्मा, छत्तीसगढ़ में जन जागरण तथा सामाजिक क्रांति के अग्रदूत थे । 21 दिसम्बर 1881 को राजिम के निकट महानदी के तट पर बसे ग्राम चंद्रसूर में आपका जन्म हुआ । आपकी स्कूली शिक्षा प्राथमिक स्तर तक हुई और आगे घर पर ही स्वाध्याय से आपने संस्कृत, बांगला, उड़िया भाषाएं सीख लीं । किशोरावस्था से आप कविताएं, लेख तथा नाटक लिखने लगे । कुरीतियों को मिटाने के लिए शिक्षा के प्रचार-प्रसार को आवश्यक समझते थे । आप हिन्दी भाषा के साथ छत्तीसगढ़ी को भी महत्व देते थे । आपने हिंदी तथा छत्तीसगढ़ी में लगभग 18 ग्रंथों की रचना की, जिसमें छत्तीसगढ़ी दान-लीला चर्चित कृति है ।
19 वीं सदी के अंतिम चरण में देश में राजनैतिक और सांस्कृतिक चेतना की लहरें उठ रही थी । समाज सुधारकों, चिंतकों तथा देशभक्तों ने परिवर्तन के इस दौर में समाज को नयी सोच और दिशा दी । छत्तीसगढ़ में आपने सामाजिक चेतना का स्वर घर-घर पहुंचाने में अविस्मरणीय कार्य किया । आप राष्ट्रीय कृषक आंदोलन, मद्यनिषेध, आदिवासी आंदोलन, स्वदेशी आंदोलन से जुड़े और स्वतंत्रता के यज्ञवेदी पर अपना सर्वस्व अर्पित कर दिया ।
छत्तीसगढ़ के ग्रामीण अंचलों में व्याप्त रुढ़िवादिता, अंधविश्वास, अस्पृश्यता तथा कुरीतियों को दूर करने के लिए आपने अथक प्रयास किया । आपके हरिजनोद्धार कार्य की प्रशंसा महात्मा गांधी ने मुक्त कंठ से करते हुए, इस कार्य में आपको गुरु माना था । 1920 में धमतरी के पास कंडेल नहर सत्याग्रह आपके नेतृत्व में सफल रहा । आपके प्रयासों से ही महात्मा गांधी 20 दिसम्बर 1920 को पहली बार रायपुर आए ।
असहयोग आंदोलन के दौरान छत्तीसगढ़ से जेल जाने वाले व्यक्तियों में आप प्रमुख थे । जीवन-पर्यन्त सादा जीवन, उच्च विचार के आदर्श का पालन करते रहे । समाज सेवा में रत परिश्रम के कारण शरीर क्षीण हो गया और 28 दिसम्बर 1940 को आपका निधन हुआ । छत्तीसगढ़ शासन ने उनकी स्मृति में साहित्य/आंचिलेक साहित्य के लिए पं. सुन्दरलाल शर्मा सम्मान स्थापित किया है ।