करूणामाता जी का जन्म केवटा डबरी के मालगुजार रतिराम जी के घर में हुआ। वे संस्कारी होने के साथ ही गृह कार्यों में दक्ष, बुद्धिमान, स्वभिमानी स्वभाव की थी। करूणामाता का विवाह पुज्यनीय गुरु घासीदास जी के परपोते गुरुगोसाई अगमदास जी के साथ सन् 1935 में हुआ था।
गुरुगोसाई अगमदास जी (सांसद) के सतलोक गमन के पश्चात राजराजेश्वरी करूणामाता सामाजिक कार्यों में लीन रहीं। भारत में आजादी के पूर्व से ही सतनामी समाज के महिलाओं को पुरुषो के समान अधिकार प्राप्त है। राजराजेश्वरी करूणामाता सतनामधर्म सभाओं में स्त्री व पुरुष को जीवन रूपी रथ के दो पहिया बतलाकर नारी जाति के सम्मान व स्वाभिमान के लिए आवाज उठाकर समाज में महिलावर्ग का उत्थान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
माता जी ने समाज में फिजूल खर्च को रोकने तपोभूमि गिरौदपुरी में सामुहिक आर्दश विवाह की शुरूआत किया जहां माता जी के मार्गदर्शन में हजारों सामाजिक शादियां बड़ी ही सादगी के साथ कराई, जो आज भी अनवरत जारी है। आज सभी धर्म व सम्प्रदाय के लोग सामुहिक आदर्श विवाह का आयोजन कर समय व धन की बचत कर रहे हैं। 31 अगस्त सन् 2006 को माता जी पंचतत्व में विलिन हो गई। राजराजेश्वरी करूणामाता जी का पूरा जीवन समाज सुधार, मानव कल्याण व समाज में एकता तथा सतनामधर्म हेतु समर्पित रहा।
हाथकरधा के क्षेत्र में सूती वस्त्र उत्पादन की पारंपरिक कला, संस्कृति की अनुपमा को अक्षुण्य बनाये रखने के लिए छत्तीसगढ़ शासन द्वारा उनकी स्मृति में राज्य स्तरीय "राजराजेश्वरी करूणामाता हाथकरघा प्रोत्साहन पुरस्कार" की स्थापना की है।