छत्तीसगढ़़ राज्य में आज से लगभग 117 वर्ष पहले पत्रकारिता की बुनियाद रखने वाले हिन्दी भाषा के वरिष्ठतम पत्रकार और साहित्यकार स्वर्गीय पंडित माधवराव सप्रे का जन्म 19 जून 1871 को मध्यप्रदेश के ग्राम पथरिया (जिला दमोह) में हुआ था। उनकी प्राथमिक शिक्षा छत्तीसगढ़़ के बिलासपुर मंे और हाई स्कूल की शिक्षा रायपुर में हुई। उन्होंने उच्च शिक्षा जबलपुर, ग्वालियर और नागपूर में प्राप्त की । कोलकाता विशवविद्यालय से बी.ए. की उपाधि प्राप्त करने के बाद उन्हांेने सरकारी नौकरी नहीं करने और आजीवन हिन्दी भाषा तथा देश की सेवा करने का संकल्प लिया । सप्रे जी का व्यक्तित्व और कृतित्व साहित्यकारों और पत्रकारों सहित आम जनता के लिए भी प्रेरणादायक है।
पंडित माधव राव सप्रे ने जनवरी 1900 में श्री रामराव चिंचोलकर के साथ मिलकर छत्तीसगढ़़ के पेण्ड्रा (जिला बिलासपुर) से हिन्दी मासिक पत्रिका ”छत्तीसगढ़़ मित्र” का सम्पादन ओर प्रकाशन शुरू किया था । यह तत्कालीन छत्तीसगढ़़ राज्य में हिन्दी भाषा की पहली पत्रिका थी। इस पत्रिका में प्रकाशित सप्रे जी की कहानी ”टोकरी भर मिट्टी” को हिन्दी की पहली मौलिक कहानी होने का गौरव प्राप्त है। उनहांेने कई महत्वपूर्ण पुस्तकों की रचना की और लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक द्वारा मराठी में रचित ”गीता रहस्य” का हिन्दी अनुवाद भी किया। सप्रे जी ने राव बहादुर चिंतामणी विनायक वैध द्वारा रचित मराठी ग्रंथ ”श्रीमन्महाभारत-मीमांसा” का सरल हिन्दी में ”महाभारत मीमांसा” के नाम से अनुवाद किया।
छत्तीसगढ़़ राज्य स्वर्गीय पंडित माधव राव सप्रे जैसे महान तपस्वी और यशस्वी साहित्यकार और पत्रकार की कर्मभूमि के रूप में गौरवान्वित हुआ है। स्वतंत्रता संग्राम के दिनों में सप्रे जी ने अपनी लेखनी से आम जनता के बीच राष्ट्रीय चेतना के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने बालिका शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए रायपुर में सन् 1912 में जानकी देवी कन्या पाठशाला की स्थापना की और वर्ष 1920 में यहां राष्ट्रीय विद्यालय की स्थापना में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया। सप्रे जी ने हिन्दी के साहित्यकारों को संगठित करने के लिए मई 1906 में नागपुर से हिन्दी गं्रथमाला पत्रिका का भी प्रकाशन शुरू किया, लेकिन राष्ट्रीयता से परिपूर्ण विचारों पर आधारित इस पत्रिका की बढ़ती लोकप्रियता के कारण तत्कालीन ब्रिटिश सरकार ने सन् 1908 में इसका प्रकाशन बंद करवा दिया। इतना ही नहीं बल्कि अंग्रेज सरकार ने 22 अगस्त 1908 को उन्हें आई.पी.सी. की धारा-124 (अ) के तहत गिरफतार भी कर लिया। कुछ महीनों के बाद उन्हें जेल से रिहा किया गया। तत्कालीन सामाजिक-सांस्कृतिक विषयों पर सप्रे जी के लगभग 200 निबंध कई पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए। सन् 1924 में उन्हे देहरादून में आयोजित अखिल भारतीय हिन्दी साहित्य सम्मेलन में सभापति चुना गया। पंडित माधव राव सप्रे का निधन 23 अप्रेल 1926 को रायपुर के तात्यापारा स्थित अपने निवास में हुआ।
साहित्य और पत्रकारिता के क्षेत्र में उनके ऐतिहासिक योगदान को यादगार बनाने के लिए छत्तीसगढ़़ शासन द्वारा पंडित माधव राव सप्रे राष्ट्रीय रचनात्मकता सम्मान की स्थापना की गयी है। यह पुरस्कार मीडिया के क्षेत्र में अपने विशिष्ट रचनात्मक लेखन और हिन्दी भाषा के प्रति समर्पण भाव से कार्य करके राष्ट्र का गौरव बढ़ाने वाले साहित्यकारों और पत्रकारों को दिया जाता है।