बैरिस्टर ठाकुर छेदीलाल का जन्म सन् 1886 में छत्तीसगढ़ के जांजगीर-चांपा ज़िले के अकलतरा नगर के जमीदार परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम श्री पचकोड सिंह था।
बैरिस्टर छेदीलाल प्रयाग के म्योर कॉलेज से इंटरमीडिएट करने के बाद उच्च शिक्षा के लिए ऑक्सफोर्ड चले गए। वहां पर उन्होंने इतिहास में एम.ए., एल.एल.बी. और बार-एट-लॉ की उपाधि प्राप्त की। उन्हे हिंदी, अंग्रेजी, उर्दू और संस्कृत की भाषा में वे काफी निपुण थे।
सन् 1919 से वे स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय रहे। सन् 1921 में बनारस वि.वि और सन् 1922 में गुरुकुल कांगड़ी में कुछ समय तक अध्यापन का कार्य भी किया।
इसके बाद सन् 1926 तक प्रयाग की सेवा समिति में संचालक के रूप में रहे। उन्होंने अपनी विद्वता से कानून के क्षेत्र में बहुत कीर्ति अर्जित की। लेकिन उनका राष्ट्र प्रेमी मन शीघ्र ही विचलित हो गया और वे वकालत छोड़ कर सक्रिय राजनीति में उतर गए।
शुरुआत में उनका झुकाव स्वराज्य पार्टी की ओर रहा लेकिन सन् 1928 में उन्होंने गांधी जी से प्रभावित होकर कांग्रेस की ओर अपना रास्ता चुन लिया। बिलासपुर अंचल में जागृति फैलाने के लिए उन्होंने रामलीला के मंच से राष्ट्रीय रामायण का अभिनव प्रयोग किया।
सविनय अवज्ञा आंदोलन में उन्होने महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने मुंगेली के किसान कतनामियों को राजनीति में लाने के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। उनका का कार्य मुख्य रूप से जनता के बीच में था।
सन् 1937 के प्रांतीय चुनावों में वह सेन्ट्रल प्रॉविंस (मध्य प्रांत) से कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में विजय होने पर विधायक चुने गए। कानूनी विद्वान् होने के कारण उन्हें, (1946-50) तक भारतीय सविधान सभा के सदस्य के रूप चुना गया, तथा (1950-52) तक वह अस्थायी संसद के सदस्य मनोनीत किये गए। वर्ष सन् 1953 में उनकी मृत्यु हो गई।
मध्यप्रदेश विभाजन के बाद उन्हें छत्तीसगढ़ में पहला बैरिस्टर कहा जाता है। इनकी स्मृति में ‘‘बैरिस्टर ठाकुर छेदीलाल सम्मान’’ स्थापित किया है।