छत्तीसगढ़ी संगीत के ‘कालजयी’ संगीतकार एवं भीष्म पितामह कहे जाने वाले खुमान साव ने लोक सांस्कृतिक मंच ‘‘चंदैनी गोंदा’’ के माध्यम से आजीवन, लोक गीत व संगीत को सहेजने और संवारने में लगे रहे। अपनी कला से उन्होंने,छत्तीसगढ़ के लोक संगीत को नई पहचान दी। संगीत के माध्यम से छत्तीसगढ़ी माटी की खुशबू को उन्होंने भारत समेत पूरे विश्व में फैलाया। छत्तीसगढ़ की समृद्ध लोक सांस्कृतिक परंपरा में रचे बसे गीतों और विलुप्त होती लोक धुनों को संजोने का भी काम किया। यहाँ तक कि छत्तीसगढ़ी रचनाओं को स्वरबद्ध कर, उन्हें फिल्मी गीतों की तरह जन-जन तक पहुंचाने वाले खुमान साव ही थे। आपका जन्म 5 सितम्बर 1929 को डोंगरगांव के समीप खुर्सीटिकुल नामक गांव में एक सम्पन्न मालगुजार परिवार में हुआ था। ग्यारह वर्ष की आयु में नाचा के युग पुरूष दाऊ मंदराजी के साथ जुड़कर, नाचा दल में संगत किये थे। पश्चात् प्रदेश की लोक कला और संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए चंदैनी-गोंदा संस्था की स्थापना की। आज छत्तीसगढ़ की लोकगीत, लोक संगीत समृद्ध एवं संरक्षित है तो वह खुमान साव की संगीत की तपस्या का फल है। संगीत के क्षेत्र में उनके विशेष योगदान के लिए, भारत सरकार ने उन्हें संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया। खुमान साव की विलक्षण प्रतिभा उनकी संगीत साधना और मंच पर पांच हजार प्रस्तुतियाँ रही हैं। लोक संगीत, सुगम संगीत और शास्त्रीय संगीत के साव जी बेजोड़ साधक थे। रामचन्द्र देशमुख जी के साथ मिलकर, चंदैनी-गोंदा को देश के अनेक-अनेक प्रतिष्ठापूर्ण मंचों पर प्रदर्शन किया। चंदैनी-गोंदा के मंचन में उनकी संगीत साधना का श्रम, छत्तीसगढ़ की अस्मिता को संरक्षित करने का एक विकल्प साबित हुआ। 09 जून, 2019 को 90 वर्ष की आयु में उन्होंने इस दुनिया को अलविदा कह दिया। छत्तीसगढ़ शासन द्वारा उनकी स्मृति में "खुमान साव सम्मान" स्थापित किया गया है।