युगदृष्टा महाराजा अग्रसेन का जन्म लगभग पांच हजार वर्ष पूर्व प्रताप नगर के राजा वल्लभ के यहां सूर्यवंशी क्षत्रिय कुल में हुआ माना जाता है । आप बाल्यकाल से ही अत्यन्त दयालु, उदार तथा सहिष्णु प्रवृत्ति के थे । आपका विवाह नागराज महिधर की कन्या से स्वयंवर रीति से हुआ था । 35 वर्ष की आयु में अग्रोहा साम्राज्य की नींव डाली, आपके राज्य में अहिंसा का पालन, मानव समता, श्रम, पुरुषार्थ तथा समन्वय की भावना से सर्वे भवंतु सुखिनः सर्वे संतु निरामयाः तथा समाज के अंतिम छोर के व्यक्ति को समाज की मुख्य धारा सो जोड़ना सर्वोपरि था ।
आपका जीवन त्याग, तपस्या एवं मर्यादापूर्ण रहा । आपने तत्कालीन यज्ञों में प्रचलित हिंसा का त्याग कर 18 महायज्ञों का आयोजन किया । माना जाता है कि यज्ञों में बैठे 18 गुरुओं के नाम पर ही अग्रवंश (अग्रवाल समाज) की स्थापना हुई ।
हिंसारहित समाज की अवधारणा के साथ-साथ आपने भातृत्व और मैत्री भाव को मानव कल्याण के लिए संस्थापित किया, जिससे समग्र समाज समुन्नत हो सके । अपने राज्य में एक ईंट एक मुद्रा का उद्घोष किया, जिसमें सक्षम व्यक्ति सामाजिक दायित्व के तहत अंतिम छोर पर खड़े व्यक्ति को सहयोग करे । मानव कल्याण की आपकी अंतर्निहित विचारधारा ने समतामूलक समाज का बीजारोपण कर परस्पर सहयोग से समाजवादी व्यवस्था विकसित की ।
आपके अग्र राज्य की नीति जियो और जीने दो मानवता का महान संदेश है । आपने निज स्वार्थ का परित्याग कर परमार्थ का रास्ता अपनाया और कृषक जीवन की प्रतिष्ठा, श्रम की महिमा, शोषणविहीन समाज, पशुबलि विरोध, ऊंच-नीच के भेदभाव का उन्मूलन, नारी चेतना, अनेकता में एकता आदि मूल्यों को समाज में प्रतिष्ठित किया ।
आप मानव-मात्र के उत्थान के साधक थे और परस्पर सहयोग द्वारा प्रत्येक व्यक्ति को मानव कल्याण के लिए, दायित्व निर्वहन हेतु पथ-प्रदर्शन तथा आह्वान करते रहे । छत्तीसगढ़ शासन ने उनकी स्मृति में सामाजिक समरसता के क्षेत्र में स्तुत्य कार्यो के लिए महाराजा अग्रसेन सम्मान स्थापित किया है ।