राजा चक्रधर सिंह का जन्म 19 अगस्त, 1905 को रायगढ़ रियासत में हुआ था । नन्हें महाराज के नाम से सुपरिचित, आपको संगीत विरासत में मिला । उन दिनों रायगढ़ रियासत में देश के प्रख्यात संगीतज्ञों का नियमित आना-जाना होता था । पारखी संगीतज्ञों के सान्निध्य में शास्त्रीय संगीत के प्रति आपकी अभिरुचि जागी । राजकुमार काँलेज, रायपुर में अध्ययन के दौरान आपके बड़े भाई के देहावसान के बाद रायगढ़ रियासत का भार आकस्मिक रुप से आपके कंधों पर आ गया ।
1924 में राज्याभिषेक के बाद अपनी परोपकारी नीति एवं मृदुभाषिता से रायगढ़ रियासत में शीघ्र अत्यन्त लोकप्रिय हो गए । कला-पारखी के साथ विभिन्न भाषाओं में भी आपकी अच्छी पकड़ थी । कत्थक के लिए आपको खास तौर पर जाना गया । अपनी अनुभूति तथा संगीत की गहराइयों में डूबकर आपने कत्थक का विशिष्ट स्वरुप विकसित किया, जिसे रायगढ़ घराने के नाम से जाना जाता है ।
23 वर्षों के कार्यकाल में रायगढ़ को देश के प्रमुख सांस्कृतिक केन्द्र के रुप में संवारने का श्रेय आपको है । आप समर्पित कला साधक होने के साथ-साथ उच्च कोटि के विद्वान और संगीत शास्त्र के ज्ञाता थे । आपने कत्थक की अनेक नई बंदिशें तैयार की । नृत्य और संगीत की इन दुर्लभ बंदिशों का संग्रह संगीत ग्रंथ के रुप में आया, जिनमें मूरत परन पुष्पाकर ताल-तोयनिधि, राग-रत्न मंजूषा, और नर्तन-स्वर्गस्वम् विशेष तौर पर याद किए जाते हैं ।
संगीत के क्षेत्र में आपके विशिष्ट योगदान को दृष्टिगत कर मध्य प्रदेश शासन ने भोपाल में चक्रधर नृत्य केन्द्र की स्थापना की है । देश के संगीत तीर्थ के रुप में स्थापित नगर-रायगढ़ और उसके नरेश की संगीत, नृत्य और ललित कलाओं के प्रति उनकी दूरदर्शी सोच और निष्ठा से अनवरत साधना स्मरणीय है । 7 अक्टूबर 1947 को रायगढ़ में आपका देहावसान हुआ । छत्तीसगढ़ शासन ने उनकी स्मृति में कला एवं संगीत के लिए चक्रधर सम्मान स्थापित किया है ।